Friday, 2 July 2021

स्कूल का प्रमाणपत्र आयु निर्धारण के लिए प्रथम साक्ष्य , कोर्ट का बयान


स्कूल का प्रमाणपत्र आयु निर्धारण के लिए प्रथम साक्ष्य , कोर्ट का बयान




इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि स्कूल में दर्ज जन्मतिथि आयु का प्रथम प्रमाण मानी जाएगी। इसके न होने पर निकाय का जन्म प्रमाणपत्र मान्य होगा। दोनों ही न हो तो मेडिकल जांच से तय उम्र मान्य होगी। कोर्ट ने कहा कि पीड़ित नाबालिग है तो उसे किशोर न्याय कानून के तहत संरक्षण दिया जाना जरूरी है।


सी के साथ कोर्ट ने प्रयागराज के खुल्दाबाद स्थित बाल संरक्षण गृह में पीड़िता को रखने के बाल कल्याण समिति के आदेश को वैध करार दिया है और मेडिकल जांच रिपोर्ट के आधार पर बालिग होने के नाते अवैध निरुद्धि से मुक्त कराने की मांग में दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी है।

यह आदेश न्यायमूर्ति बच्चूलाल एवं न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने दिया है। लड़की के परिवार वालों ने 23 दिसंबर 2020 को अपहरण, षडयंत्र व पाक्सो एक्ट के तहत फतेहपुर के मलवां थाने में एफआईआर दर्ज कराकर कहा कि उनकी लड़की 16 साल दो माह की है। बरामदगी के बाद लड़की ने बयान में कहा कि वह 17 साल की है। स्कूल प्रमाणपत्र में उसकी जन्मतिथि दो अप्रैल 2004 दर्ज है। इससे साबित है कि वह नाबालिग है।

याचियों का कहना था कि उन्होंने गुजरात के एक मंदिर में शादी कर ली है। मेडिकल जांच रिपोर्ट के अनुसार लड़की की आयु 19 साल है इसलिए उसकी निरुद्धि अवैध है। उन्हें तलब कर मुक्त कराया जाए।

कोर्ट ने किशोर न्याय कानून व सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि घटना के समय वह नाबालिग थी इसलिए संरक्षण गृह में रखने का आदेश विधिसम्मत व कमेटी को प्राप्त अधिकार के तहत दिया गया है।


 

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